भक्त खुश, दलाल पस्त! दिल्ली में कांवड़ के नाम पर ‘घोटाला लीला’ खत्म!

शकील सैफी
शकील सैफी

सावन का महीना शुरू होते ही जहां शिवभक्त ‘बोल बम’ की गूंज में डूब जाते हैं, वहीं कुछ ‘टेंडरबाज’ भी हर साल ‘बोल धन’ की तैयारी करने लगते थे। दिल्ली में कांवड़ यात्रा सिर्फ श्रद्धा का नहीं, बल्कि वर्षों से सेटिंग-बैठक और टेंडर-तिजोरी का खेल बन चुकी थी। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने साफ कह दिया — “भक्ति के रास्ते में अब भ्रष्टाचार की चप्पलें नहीं चलेंगी।”

क्या ‘कथा’ भी अब जाति देखकर सुनाई जाएगी?

टेंट आधे, बिल पूरे — अब नहीं चलेगा!

हर साल कांवड़ शिविरों के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट फूंक दिया जाता था। नतीजा? टेंट अधूरे, टॉयलेट गंदे और भक्त लंगर की जगह सरकार को कोसते दिखते थे। ठेकेदार हवाई जहाज़ से जाते थे, और भक्त चप्पल घिसते थे। अब सरकार ने फैसला किया — कोई ठेका नहीं, कोई दलाली नहीं, अब पैसा सीधे जनता की सेवा में।

सरकार बोले — पहले सेवा, बाद में सेल्फ़ी!

रेखा गुप्ता सरकार का बड़ा फैसला है — अब रजिस्टर्ड समितियों को ₹50,000 से ₹10 लाख तक का सीधा फंड मिलेगा। मतलब, पहले भक्तों को पानी मिलेगा, फिर नेता जी को फोटो ऑप। और हां, यह पैसा भी इंस्टाग्राम रील बनाने वालों के लिए नहीं, जो सच में सेवा करते हैं उनके लिए है।

बिजली का झटका अब दलालों को

पिछले सालों में शिविरों की बिजली कटती थी, लेकिन नेताओं के दफ्तर जगमगाते रहते थे। अब शिविरों को मिलेगी 1200 यूनिट तक फ्री बिजली। सरकार ने डेटा चेक किया और पाया कि बड़े से बड़ा पंडाल भी इससे कम में काम चला लेता है। यानी अब किसी ‘बिजली माफिया’ की जेब गर्म नहीं होगी, बस भक्ति में अलख जलेगी।

NOC नहीं, नो चक्कर प्लीज़!

कांवड़ समितियां सालों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटती थीं। हर विभाग में ‘भगवान के नाम पर’ हाथ फैलाना पड़ता था — और वहां भक्तों की नहीं, दलालों की सुनी जाती थी। अब 72 घंटे में सिंगल विंडो से सारी मंजूरी — मतलब अब ‘भगवान भरोसे’ नहीं, बल्कि ‘सरकार भरोसे’ शिविर लगेंगे।

विपक्ष की भक्ति हड़प, राजनीति में भूचाल!

रेखा गुप्ता के इस फैसले ने विपक्ष की भक्ति राजनीति की नींव ही हिला दी। जो पार्टियां सावन में भक्तों की ‘सेवा’ के बहाने मंच बनाती थीं, अब वो मंच खाली दिख रहे हैं। विपक्ष इस फैसले को ‘लोकलुभावन’ बता रहा है, लेकिन अंदरखाने कह रहा है — “ये स्कीम तो हमें पहले लानी थी!”

जनता बोले — अब कांवड़ में नहीं होगा टेंशन

शिवभक्तों का साफ कहना है कि इस बार सेवा में ईमानदारी की झलक दिख रही है। एक भक्त ने मजाक में कहा, “पहले कांवड़ में जल आता था, अब लगता है कि सिस्टम का कीचड़ भी साफ हो जाएगा।” जनता ने भी पहली बार देखा कि सरकार सिर्फ पोस्टर नहीं लगा रही, वाकई टेंट लगा रही है।

क्या बाकी राज्यों की आंख खुलेगी?

दिल्ली मॉडल अब एक मिसाल बनता जा रहा है। सवाल ये है — क्या बाकी राज्य भी अपने कांवड़ व्यवस्थाओं को दलालों से मुक्त करेंगे? या फिर वो भी वही पुराना ढर्रा अपनाकर भक्तों को वही अधूरी सेवा और पूरी प्रेस रिलीज़ थमाते रहेंगे?

अंत में — जब सावन बना ‘सिस्टम शुद्धिकरण’ का मौसम

इस बार सावन में सिर्फ दूध नहीं चढ़ेगा, बल्कि पुरानी सरकारों की फाइलों पर जमी मलाई भी साफ होगी। जनता, भक्त और यहां तक कि सरकारी बाबू भी अब समझ गए हैं कि कांवड़ यात्रा सिर्फ श्रद्धा नहीं, अब सिस्टम सुधार का मौका है।

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